tag:blogger.com,1999:blog-6190860441246547232.post2222618431994274219..comments2024-02-04T14:09:59.513+05:30Comments on डायरी: कथादेश वाले हरिनारायण बाबू को मालूम हो कि ....Punj Prakashhttp://www.blogger.com/profile/13508235479639115507noreply@blogger.comBlogger11125tag:blogger.com,1999:blog-6190860441246547232.post-51771796230178622152013-04-15T19:00:48.482+05:302013-04-15T19:00:48.482+05:30इतनी बेबाकी से अपनी बात आपने कथादेश के साथ-साथ तमा...इतनी बेबाकी से अपनी बात आपने कथादेश के साथ-साथ तमाम साहित्यिक पत्रिकाओं तक पहुंचाकर तमाम दबे-दुबके साहित्य प्रेमियों की सामूहिक पाती ही सार्वजनिक कर दी ....धन्यवाद आपको। सिद्धार्थ प्रताप सिंह https://www.blogger.com/profile/07682756014136700966noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6190860441246547232.post-35413771396323068342013-03-14T19:40:13.208+05:302013-03-14T19:40:13.208+05:30रवि जी, प्रार्थना है की ऑनलाइन पत्रिका (या फिर किस...रवि जी, प्रार्थना है की ऑनलाइन पत्रिका (या फिर किसी भी अन्य ऑनलाइन चीज) को हर समस्या का समाधान न बताएं. कागज पर छपे शब्द का अर्थ है, और रहेगा (जैसे फिल्म के ज़माने में भी नाटक मारा नहीं है, अवस्था कोई भी हो). ऑनलाइन की अपनी महत्ता है, लेकिन कोई भी चीज एक सम्पूर्ण विकल्प नहीं हो सकती.Anil Goelnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6190860441246547232.post-17331476935720610092013-01-26T22:01:47.804+05:302013-01-26T22:01:47.804+05:30आभार अर्चना जी, शिकायत पढ़ने और शिकायत से पहले करव...आभार अर्चना जी, शिकायत पढ़ने और शिकायत से पहले करवाई करने के लिए, आज ही कथादेश का जनवरी अंक देखा. कागज़ और छपाई की शिकायत दूर हो गई. आपकी इस घोषणा से कि "कोई नियमित स्तंभकार के बावजूद सामग्री भेजना चाहे, स्वागत है।" आशा है जल्द ही कथादेश को कुछ नए लेखकों के आलेख प्राप्त होंगें, हम सब कथादेश को स्नेह करनेवाले ये आशा करतें हैं कि संसाधन की कमी भी जल्द से जल्द दूर हो जाए और आलेखों, स्तंभों, कथा-कहानियों में स्तरीयता बरकरार रहे इसी आशा के साथ एक बार पुनः आभार.Punj Prakashhttps://www.blogger.com/profile/13508235479639115507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6190860441246547232.post-73892246530804136932013-01-26T12:13:54.210+05:302013-01-26T12:13:54.210+05:30डायरी वाले प्रिय भाई पुंज प्रकाश जी से सूचनार्थ नि...डायरी वाले प्रिय भाई पुंज प्रकाश जी से सूचनार्थ निवेदन है कि उनकी शिकायत दर्ज कर ली गयी है और कारवाई शिकायत मिलने के पहले ही की जा चुकी है। जनवरी अंक से प्रिण्टिंग प्रेस बदल दिया गया है और उम्मीद है कि जनवरी अंक से छपाई सफ़ाई से शिकायत का मौका नहीं मिलेगा। उन्होंने पूछा है कि कथादेश को कमी किस बात की है। ज्ञात हो कि संसाधन की। अकेले हरिनारायण जी ही लगभग पीर बावर्ची भिश्ती खर की सारी भूमिकाएँ एक साथ निबाहते हैँ जिनमें से पीर (शायद) वाली भूमिका में अर्चना वर्मा उनका हाथ बँटाती है।<br />समग्र मासिक होने के प्रयास में कथादेश को कुछ नियमित स्तंभों की, इसलिये समय पर डिलीवर करने वाले कुछ भरोसेमंद नियमित स्तंभकारों की ज़रूरत रहती है लेकिन इसका मतलब यह बिल्कुल न समझें कि वहाँ कोई "यह आम रास्ता नहीं है" या "अन्दर आना मना है" की तख्ती लगी है। आम रास्ते पर हर किसी का स्वागत है और चुन लिया जाने पर अन्दर आने के लिये भी। हमारी समझ या चुनाव मेँ "चूक" से आपकी रुचि का इत्तेफ़ाक न बैठे तो वह बात अलग है। चाहे जिस भी स्तंभ के लिये कोई नियमित स्तंभकार के बावजूद सामग्री भेजना चाहे, स्वागत है।<br />अर्चना वर्मा Anonymoushttps://www.blogger.com/profile/07952204146844223885noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6190860441246547232.post-73318246355816037342013-01-25T16:21:47.572+05:302013-01-25T16:21:47.572+05:30आभार.आभार.Punj Prakashhttps://www.blogger.com/profile/13508235479639115507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6190860441246547232.post-22324454751642720332013-01-25T12:11:19.440+05:302013-01-25T12:11:19.440+05:30कुछ दिनों से मंड्ली का लेख पढ रहा हुं। अच्छा लगा य...कुछ दिनों से मंड्ली का लेख पढ रहा हुं। अच्छा लगा यह जानकर की आप की मंडली रंगमंच की हर पह्लु पर अपनी पैनी नजर रखे हुये है।<br />Anonymousnoreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6190860441246547232.post-1021832836991880392013-01-23T15:29:17.287+05:302013-01-23T15:29:17.287+05:30sateeksateekAnonymoushttps://www.blogger.com/profile/00514434800240496727noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6190860441246547232.post-43427936002698512292013-01-23T13:27:01.909+05:302013-01-23T13:27:01.909+05:30good effort !good effort !अमितेशhttps://www.blogger.com/profile/06585018233300475736noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6190860441246547232.post-27044077425660123012013-01-23T12:37:17.323+05:302013-01-23T12:37:17.323+05:30सहमति के लिए आभार विभा जी, आपका अनुरोध मानने में स...सहमति के लिए आभार विभा जी, आपका अनुरोध मानने में समस्या ये है बात व्यक्ति पर होने लगेगा फिर, यहाँ प्रवृति पर ध्यान केंद्रित करना ज़रुरी है. हरिनारायण और अर्चना जी का नाम इसलिए है क्योंकि ये पत्रिका के पदाधिकारीगण हैं जिनसे उम्मीद है कि इन शिकायतों पर ध्यान देंगें. वैसे पिछले कुछ अंक पलट लीजिए, पत्रिका के "शालिग्राम" के दर्शन अपने-आप ही हो जायेंगें. :)Punj Prakashhttps://www.blogger.com/profile/13508235479639115507noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6190860441246547232.post-48320441208582479182013-01-23T11:30:39.315+05:302013-01-23T11:30:39.315+05:30अतः ऑनलाइन पत्रिकाएं - जैसे कि रचनाकार.ऑर्ग पढ़ें....अतः ऑनलाइन पत्रिकाएं - जैसे कि रचनाकार.ऑर्ग पढ़ें. हर किस्म की रचना और हर किस्म के रचनाकार. अनंत, असीमित. हर एक के लिए स्पेस. और, निःशुल्क. <br />जमाना अब ऑनलाइन पत्रिकाओं का ही है, यह मान लें. काश कथादेश (और उसी तरह की तमाम अन्य साहित्यिक पत्रिकाएँ) भी ऑनलाइन हो पाता.रवि रतलामीhttps://www.blogger.com/profile/07878583588296216848noreply@blogger.comtag:blogger.com,1999:blog-6190860441246547232.post-53520283597917251512013-01-22T23:57:42.659+05:302013-01-22T23:57:42.659+05:30तमाम बातों से सहमत होते हुए यह जरूर जानना चाहेंगे ...तमाम बातों से सहमत होते हुए यह जरूर जानना चाहेंगे कि इस पत्रिका में शालिग्राम की तरह कौन स्थापित है? जब इतनी लंबी-चौड़ी शिकायत की गई, विज्ञापनदाताओं के नाम दिए गए हैं, हरीनारायन और अर्चना वर्मा तक आपकी लेखनी से सुशोभित हैं तो उस शालिग्राम के नामोच्चारण में ऐसी परदादारी क्यों? Vibha Ranihttps://www.blogger.com/profile/12163282033542520884noreply@blogger.com