tag:blogger.com,1999:blog-6190860441246547232.post8113212881949023748..comments2024-02-04T14:09:59.513+05:30Comments on डायरी: सीताराम शास्त्री की हत्या और आत्महत्या के बीच मस्तराम बनके ज़िंदगी के दिन गुज़ार दो !Punj Prakashhttp://www.blogger.com/profile/13508235479639115507noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-6190860441246547232.post-29835426206262794592012-11-10T13:33:45.260+05:302012-11-10T13:33:45.260+05:30
Yog Mishra जी ने लिखा कि आलेख पढ़कर अलोक धन्वा की...<br />Yog Mishra जी ने लिखा कि आलेख पढ़कर अलोक धन्वा की ये कविता याद आती है -<br /><br />देखना <br />एक दिन मैं भी उसी तरह शाम में<br />कुछ देर के लिए घूमने निकलूंगा<br />और वापस नहीं आ पाऊँगा !<br /><br />समझा जायेगा कि <br />मैंने ख़ुद को ख़त्म किया ! <br /><br />नहीं, यह असंभव होगा<br />बिल्कुल झूठ होगा !<br />तुम भी मत यक़ीन कर लेना<br />तुम तो मुझे थोड़ा जानते हो !<br />तुम <br />जो अनगिनत बार <br />मेरी कमीज़ के ऊपर ऐन दिल के पास <br />लाल झंडे का बैज लगा चुके हो<br />तुम भी मत यक़ीन कर लेना।<br /><br />अपने कमज़ोर से कमज़ोर क्षण में भी<br />तुम यह मत सोचना <br />कि मेरे दिमाग़ की मौत हुई होगी !<br />नहीं, कभी नहीं !<br />हत्याएँ और आत्महत्याएँ एक जैसी रख दी गयी हैं<br />इस आधे अँधेरे समय में।<br />फ़र्क़ कर लेना साथी !Punj Prakashhttps://www.blogger.com/profile/13508235479639115507noreply@blogger.com