आज
सुबह-सुबह वडाली ब्रदर्स का गाया हुआ दमा दम मस्त कलंदर सुन रहा था. गाने के दौरान
उन्होंने फ़कीर मस्त कलंदर से जुड़ा एक अद्भुत किस्से का ब्यान किया है. एक बार की
बात है – मस्त कलंदर एक बेरी के पेड़ के नीचे नवाज़ पढ़ रहे थे कि बच्चे आए और
उन्होंने एक पत्थर उठाकर बेरी के पेड़ की तरफ़ उछाल दिया. पत्थर बेरी के पेड़ को लगा,
वहां से बेरी नीचे गिरी और बच्चे उसे खाने लगे. फिर दूसरा पत्थर मारा, फिर बेरी
गिरी और बच्चों ने फिर से बेरी खाई. तीसरा पत्थर जब बच्चों ने चलाया तो पत्थर बेरी
को न लगकर फकीर मस्त कलंदर को लग गई. मस्त कलंदर का ध्यान भंग हो गया और गुस्से
में बोले – “किसने यह पत्थर चलाई, मैं उसको श्राप दूँगा.”
यह
सुनकर बच्चे हाथ जोड़कर खड़े हो गए और बोले – बाबा, हम बेरी को पत्थर मार रहे थे, जो
गलती से आपको लग गई. वैसे बाबा, बेरी पत्थर खाकर हमें खाने को बेरियां देतीं हैं
लेकिन आप हमें श्राप देने की बात कर रहें हैं!”
मस्त
कलंदर को अपनी भूल का एहसास हो गया और उन्होंने बच्चों से तीन वरदान यह कहते हुए
माँगने को कहा कि – मागों, जो भी मांगना है.
बच्चों
ने पहला वरदान मांगा – माफ़ी.
दूसरा
वरदान माँगा – माफ़ी.
और
तीसरा वरदान माँगा – माफ़ी.
फिर
क्या था, मस्त कलंदर मस्त होकर उन्हें इस और उस दोनों लोकों के लिए माफ़ी दे दी.
कहने
का तात्पर्य यह कि अगर गलती करनेवाला मासूम हो तो उसकी गलती के बदले माफ़ी ही सबसे
उपयुक्त सजा है और बडकपन का घोतक भी. और यह भी कि अगर हमसे गलती होती है तो लाभ का
अवसर मिलने पर भी माफ़ी की उम्मीद ही काफी है.
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