Wednesday, November 23, 2016

देशभक्ति, बदलाव और विकास उर्फ़ नोट छोड़ो paytm करो

देशभक्ति, बदलाव और विकास यह तीनों आजकल जादू की छड़ी का काम कर रहे हैं। आप कुछ भी कीजिए बस उसके ऊपर यह छड़ी घूमा दीजिए, आपके सारे कृत पाक-साफ। वर्तमान में नोटबंदी को भी इसी जादू से जोड़ दिया गया है। नोटबंदी से भ्रष्टाचार, गरीबी, कालाधन आदि ब्रह्मराक्षसों के शिकार करने की बात प्रचारित की जा रही है जबकि ज़रा सा भी सही से इतिहास और अर्थशास्त्र को जानने समझनेवाला व्यक्ति इसे भी ज़रूरत से ज़्यादा उछाला हुआ मामला ही मानेगा। दुनियां में इससे पहले भी नोटबंदी हुए हैं लेकिन आजतक किसी भी मामले में कोई स्थायी समाधान निकाला हो, ऐसा उदाहरण शायद ही कहीं मिलता है। काला धन और भ्रष्टाचार ख़त्म करने के लिए केवल नोटबंदी काफी नहीं। वैसे भी नगदी और गैर-नगदी (cash and cashless) व्यवस्था भ्रष्टाचार का एक पक्ष मात्र है, जड़ नहीं। सोना, रियल एस्टेट, हवाला, कर प्रणाली, प्रशासन, चुनाव में कालाधन आदि की भी बात होनी चाहिए।
वैसे, कल बड़ा ही बढ़िया वक्तव्य था - I am not for sale. वैसे भी sale होने के लिए कोई भी इंसान कभी पैदा नहीं होता। तो अब यह सवाल है कि जब आप बिकने के लिए नहीं हैं तो आपकी तस्वीर paytm के विज्ञापन में क्या कर रही थी?
सनद रहे कि नोटबंदी के बाद paytm की दैनिक खरीदारी 120 करोड़ रूपए को पार कर गई है वहीँ डॉलर के मुकाबले रूपए की हालत पिछले नौ महीने में सबसे निचले स्तर पर पहुँच गई है अर्थात् 68.16 ₹ प्रति डॉलर।
हो सकता है यह भी देशहित में एक बदलाव ही हो कि प्रधानमंत्री का चेहरा केवल सरकारी विज्ञापनों में ही क्यों बल्कि गैर-सरकारी विज्ञापन में भी शान से छापे। आखिर "माल" तो बेचारा गैरसरकारी पूंजीपति ही प्रदान करता है - लगभग सारे राजनीतिक दल को, चंदे के रूप में।
यह paytm भी आजकल देश बदलने का नारा बुलंद कर रहा है। इसलिए उनका धंधा भी देशभक्ति और राष्ट्रहित से ही जुड़ा होगा बिल्कुल बाबा रामदेव की तरह जो देशभक्ति और स्वदेशी के नाम पर एक से एक रद्दी प्रोडक्ट बाज़ार में बेचे जा रहे हैं और बेचारे मासूम देशभक्त देशभक्ति और स्वदेशी के नाम पर अपनी मसुमियतयुक्त मूर्खता का एक से एक नमूना पेश कर रहे हैं!! यह देशभक्ति का बाजारवाद नहीं तो क्या है?
बहरहाल, नोटबंदी के दिन से ही paytm आक्रामक विज्ञापन कर रहा है और वर्तमान सरकार के डिजिटल इंडिया के नारे के साथ सुर में सुर मिलते हुए नोट छोड़ने और paytm अपनाने का राग "हुआँ, हुआँ, हुआँ" की तर्ज़ पर अलाप रहा है। नारा भी वैसा ही है अर्थात् देश बदलना है। नारे पर गौर कीजिए -
तुम बदलोगे, एक बदलेगा
सब बदलेंगें, देश बदलेगा
बस "हुआँ, हुआँ, हुआँ" लिखना भूल गए!!!
अब इस सवाल का क्या कोई औचित्य है कि सारे धंधेबाज आजकल देशभक्ति और देश बदलने का नारा क्यों बुलंद कर रहे हैं और जिनके ख़ून में देशभक्ति का एक कतरा तक नहीं वही देशभक्ति के प्रमाणपत्र के विक्रेता हो गए हैं और जो कोई भी इनके "हुआँ, हुआँ" में सुर नहीं मिलता उसे "देशद्रोही" का तमगा दे रहे हैं। नेताओं और राजनीतिक पार्टियों को यह भ्रम हो जाना कि वही देश के पर्याय हैं कोई नहीं बात नहीं है इस देश के लिए। "madam is India and India is madam" का नारा भी खूब उछाला गया था किसी वक्त, आजकल हर हर और घर घर का दौर है। लेकिन पता नहीं क्यों लोग यह भूल जाते हैं कि इतिहास किसी को माफ़ नहीं करता। इतिहास सबका मूल्यांकन करता है, चाहे वो राजा हो या रंक।
सनद रहे, सत्ता जो राग अलाप कर सत्तासीन होता है आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक मुनाफाखोर और धंधेबाज़ भी फ़ौरन उसी सुर में सुर मिलाने लगते हैं।
फिर paytm कोई फ्री में अपनी सेवा नहीं देता है बल्कि हर लेन देन के बदले कमीशन लेता है। IRCTC का ऐप देखते ही देखते paytm की गोद में चला गया। पहले हम अपने बैंक खाते से डेविट या क्रेडिट कार्ड के द्वारा आसानी से टिकट कटा लेते थे लेकिन जबसे इसकी देख रेख का ज़िम्मा paytm को दिया गया है तबसे वहां बिना paytm के टिकट कटाना एक चुनौती हो गई है। क्या देश ने कहा कि IRCTC की देख रेख रेलवे के करने से देशभक्ति को खतरा है इसे फ़ौरन से पेश्तर peytm के हवाले किया जाय। हर लेन देन में paytm कमीशन खाता है उसका इस्तेमाल कोई पूंजीपति अपनी जेब भरने के लिए नहीं बल्कि हमारी राष्ट्रवादी सरकार देश सेवा में कर रही होगी - इस बात पर जिसे भी शक है वह दरअसल देशद्रोही है। वैसे सरकारी सेवाओं का निजीकरण भी उदारवाद का एक सड़ा और बकवास सा फार्मूला है। सरकारी तंत्रों को दुरुस्त करने के बजाय उसे किसी पूंजीपति या धंधेबाज के हाथों में सौंप दिया जाना देशभक्ति की किस किताब के कौन से अध्याय में उचित है और यह किताब कब और कहाँ छपी - यह एक खोज का विषय है। ज़रा हमारी भी जानकारी दुरुस्त किया जाय ताकि हम भी देशभक्ति का पाठ ज़रा पढ़ ले। इस नोटबंदी से आम आदमी की मुसीबत तो जो है सो है यदि बैंक कर्मचारी अपनी नौकरी का मोह त्यागकर अपनी मुसीबतें लिख दें तो भूचाल आ जाएगा। सरकार जिस तरह रोज़ नए नए फरमान सुना रही है इससे तो यह साफ़ ज़ाहिर होता है कि दूरदर्शिता का पाठ पढनेवाले यह सरकार की तैयारी बहुत ही बचकानी थी।
paytm के लिए स्मार्टफोन चाहिए, फिर ठीक ठाक नेट कनेक्शन और नेट पैक चाहिए। अब इस देश के कितने प्रतिशत आबादी इस आफत को गले लगाने को तैयार है? खैर, आबादी की चिंता करे कौन? वैसे भी चुनाव में पैसा आबादी कम पूंजीवादी ज़्यादा लगाते हैं। तो जिसका खाया उसको चुकाना हमारा धर्म है। हम चाहे कुछ भी हों लेकिन नमक-हराम तो कतई नहीं है!!!
वोट विकास के नाम पर मिला था देश बदलने के नाम पर नहीं और कोई भी बदलाव ज़मीनी रूप से आर्थिक, राजनैतिक, सामाजिक और सांस्कृतिक स्तर से शुरू होता है जबरन थोपा नहीं जाता। असल बात मानसिकता है न कि भौतिकता।
इतिहास देख लीजिए, जिस किसी ने मानसिकता में बदलाव किए बिना जन पर किसी भी प्रकार का कोई दवाब बनाया है - उसका आज इतिहास में कोई नामलेवा तक नहीं बचा है, बड़ी-बड़ी सल्तनतें तबाह हो गईं; और जो कोई भी मानवीय चेतना से लैस होकर अपना लश्कर कठिन से कठिन वक्त में भी गतिमान रखा उसने भले ही कोई "बंदरी सेना" न बनाई हो लेकिन उनका नाम आज भी स्नेह से याद किया जाता है। यह लोकतंत्र है। इसमें नायक अन्तः जनता होती ही है। हालांकि नायकत्व का भ्रम बीच-बीच में अफसरों-नेताओं आदि को होता रहता है। किसी लोक गायक का एक गीत याद आ रहा है -
जनता की चले पल्टनियां
हिल्ले ले झकझोर दुनियां

दैनिक समाचार पत्र hindustan times का एक आर्टिकल संलग्न कर रहा हूँ और साथ में लिंक भी

Cash in circulation in an economy has little correlation with corruption, a comparative analysis of World Bank and Transparency International data suggests, deepening suspicion that those with black money prefer to keep their ill-gotten wealth in other forms of assets.

While figures show that India holds 11.8% of its economy in cash and is ranked a poor 76th in the global corruption ranking. Germany, at 9th in the graft ranking, has an 8.7% cash economy.

Sweden, one of the world’s top three least corrupt countries, and Nigeria, one of the worst, has near similar proportion of cash in their economies.

Hindustan Times analysed the cash in circulation and GDP of 26 countries – 12 top economies barring the US and China, 12 very corrupt countries with stable governments, and three mid-sized economies with varying corruption ranks.

The findings suggested India’s cash in circulation as a portion of GDP was near about international standards.

France, for example, holds 9.4% in cash and is ranked 23 by the anti-graft body, Transparency International. Experts said India’s marginally more cash proportion could be because a majority of Indians depend on cash for daily transactions in absence of inadequate banking facilities.

Japan, the world’s third largest economy and ranked 18th on the corruption index, has 20.7% cash economy.

The analysis of data showed up another interesting fact: Russia, the world’s 13 largest economy and Spain, the 14th largest, shared the same proportion of cash economy.

Yet, Russia is ranked 119 on the corruption index while Spain is a lot cleaner at 36. Corruption, the data suggested, had little impact on their cash in circulation.

http://m.hindustantimes.com/business-news/little-connection-between-cash-in-economy-and-corruption/story-EthX7dL7j2m1szcQkPUi7N.html

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