Wednesday, May 29, 2013

127आवर्स - डैनी बोएल की फिल्म

127 Hours is an action movie with a guy who can't move. – Danny Boyle.
अरोन राल्स्टोन की संस्मरणात्मक किताब ‘बिटविन अ रॉक एंड अ हार्ड प्लेस’ (Between a Rock and a Hard Place) पर आधारित फिल्म 127 आवर्स (सन 2010) के निर्माता, निर्देशक व सहलेखक डैनी बोएल (Danny Boyle) हैं. वही डैनी जिन्हें हम ‘स्लमडॉग मिलिनियर’ फिल्म के लिए जानते हैं.  
स्लमडॉग मिलिनियर’ की तरह डैनी बोएल इस फिल्म में भी फ्लैश बैक की अपनी तकनीक का सच्चाई और सादगी से प्रयोग करते हैं जिसकी वजह से पटकथा और कहानी में एक से एक परत जुड़ते चले जाते हैं. बाकि दोनों फिल्मों किसी प्रकार की कोई समानता नहीं है, शैलीगत भी नहीं. डैनी बोएल शायद पटकथा के हिसाब से फिल्म की शैली का निर्धारण करने में यकीन करतें हैं. जो अपने-आपमें बड़ी बात है कि कथ्य के अनुसार फिल्म की शैली और गति निर्धारित हो न कि फिल्म के एक बने बनाये लोकप्रिय फार्मूले के हिसाब से, जैसा की मुम्बईया फिल्म उद्योग में अक्सर देखने को मिलता है. यहाँ कथ्य कैसा भी हो सबका ट्रीटमेंट अमूमन एक जैसा ही होता है – सतही और व्यावसायिक मनोरंजन.
सुनसान पहाड़ी दर्रे में फंसे एक अकेले इंसान आरोन रालस्टन (अभिनेता- जेम्स फ्रांको) की सच्ची घटना पर आधारित सच्ची कहानी, जिसमें लोकप्रिय तत्व लगभग न के बराबर हो, पर फिल्म बनाना निश्चित ही जोखिम भरा काम है. पर शायद विश्व सिनेमा के कुछ दर्शक लकीर के फकीर पॉपुलर सिनेमा के इतर, बेहतरीन सिनेमा की कद्र करना सीख गए हैं. नहीं तो 94 मिनट की 18 मिलियन डॉलर लागत से बनी इस फिल्म ने अब तक लगभग 60, 738, 797 डॉलर नहीं कमाए होते. इसके लिए हमें विश्व के वैसे फिल्मकारों का निश्चित रूप से आभारी होना चाहिए जो सफलता-असफलता और कमाऊ मानसिकता के बोझ से ऊपर उठकर, सिनेमा को एक सर्थक कला मानते हुए नए-नए विषयों पर प्रायोगिक तरीके से फिल्म बनाने का जोखिम उठाने का जूनून रखते हैं. हमारे यहाँ ऐसी फ़िल्में भले ही नकार दी जाय या सिनेमाघरों तक पहुँचाने से पहले ही दम तोड़ दें किन्तु बाहर कई देशों में इसकी एक समृद्ध परम्परा रही है और वैसी-वैसी फ़िल्में भी सफल हुई हैं जिनके असफल हो जाने की घोषणा उस फिल्म से जुड़े कई लोग फिल्म बनने के दौरान ही कर रहे थे. ऐसी फ़िल्में न केवल सफल हुई बल्कि वे आज विश्व सिनेमा की धरोहर तक मानी जाती है. गोदार की ब्रेथलेस (1960) सहित कई अन्य फ़िल्में इस श्रेणी में रखी जा सकतीं हैं.   
ऐसा कहना कि यह एक विश्व क्लासिक है एक अतिवाद होगा, किन्तु इतना ज़रूर कहा जा सकता है कि यह एक सार्थक फिल्म है. जो बहादुरी और बहादुरी के प्रदर्शन के अंतर को वीरता पूर्वक प्रदर्शित करता है, जिसके अंत में अरोन राल्स्टोन खुद, उनकी पत्नी व बेटा के साथ दिखाई पड़तें हैं. अरोन राल्स्टोन अर्थात वो इंसान जिनके अनुभवों पर इस फिल्म का निर्माण हुआ है.
इस फिल्म से जुड़ी कई सारी उपकथाएं हैं; मसलन – इस फिल्म के ट्रेलर देखकर ही कई दर्शक बेहोश हो गए, उल्टियां करने लगे, आखें बंद कर ली, बीमार महसूस करने लगे, पैनिक हो गए आदि आदि. हो सकता कि कुछ दर्शकों ने ऐसा महसूस किया हो परन्तु इन घटनाओं की प्रमाणिकता संदेहास्पद है. वैसे, इस बात से भी इंकार नहीं किया जा सकता कि यह प्रचार का एक तरीका है. इस फिल्म में ऐसा कुछ खास नहीं है जिसकी वजह से इतना कुछ हो, सिवाए उस दृश्य के जहाँ नायक चट्टान के नीचे दबा अपना हाथ एक छोटी सी चाइनीज़ छुरी के सहारे स्वयं ही काटकर अपनी ज़िंदगी बचाता है. यह दृश्य जीवन के लिए अपने मजबूर अंगों की कुर्बानी के रूप भी देखा जा सकता है और कुर्बानी पीड़ादायक और बहादुराना दोनों होती ही है. मर्द को दर्द नहीं होता इस तरह के संवाद और अनुभव अब विशुद्ध व्यावसायिक हिंदी सिनेमा में भी नहीं सोभता. एक ही पर्दे पर कभी-कभी तीन चार दृश्य एक साथ चल रहा होता है. कभी वर्तमान और भूतकाल एक साथ दिखाई पड़ता है तो कभी भविष्य, सपने, स्मृतियाँ और स्मृतियों से वार्तालाप चल रहा होता है. कहने को हम इसे डाक्यूमेंट्री स्टाईल की फिल्म कह सकते हैं जिसमें घटनाएँ स्थिर हैं और जिसे प्रकृति (धूप, छांव, अँधेरा, उजाला, हवा, पानी, बारिश, बादल, पक्षी आदि) और आंतरिक द्वन्द बीच-बीच में गति प्रदान करता रहता है. यहाँ प्रोटोगेनिस्ट कोई व्यावसायिक फिल्म का नायक नहीं है कि एक हाथ से ट्रक को रोक दे और नायिका के लिए एक ही घूसे में दीवार तोड़ दे, यह एक इंसान की कथा है जिसे एक पत्थर के नीचे दबे अपने हाथ से छुटकारा पाने और अपनी ज़िंदगी बचाने में 127 घंटे लगते हैं. यह कोई कपोल कथा नहीं बल्कि सच्ची घटना है जिसे थोड़े बहुत बदलाव के बाद फिल्म की शक्ल प्रदान की गई है. जिसे देखकर स्वयं अरोन राल्स्टोन के मुंह से निकाल पड़ता है - "So factually accurate it is as close to a documentary as you can get and still be a drama."
यह जीवटता की एक ऐसी मानवीय कथा है, संवाद कम दृश्य ज़्यादा हैं और जिसमें मानव के गुण-अवगुण, अच्छाई-बुराई, भय-अभय सब तथा मानवीय रूप में विद्दमान हैं.
भारतीय संगीतकार एआर रहमान के संगीत और अन्तोनी डोड मंटले (Anthony Dod Mantle) के बेहतरीन कैमरा मूवमेंट-युक्त सिनेमोटोग्राफी से सुसज्जित व लगभग पुरी दुनियां के संजीदा दर्शकों व फिल्म समालोचकों द्वारा प्रशंसित इस फिल्म ने गोल्डन ग्लोब अवार्ड, ब्रिटिश अकादमी फिल्म अवार्ड, 83वां एकेडमी अवार्ड आदि सहित अन्य फिल्म पुरस्कार समारोहों के लिए बेहतरीन फिल्म, बेहतरीन निर्देशन, मुख्य भूमिका में बेहतरीन अभिनय, बेस्ट एडाप्टेड स्क्रीन प्ले, बेहतरीन फिल्मांकन, बेहतरीन संपादन, बेहतरीन संगीत, बेस्ट एडाप्टेड स्क्रीन प्ले, बेस्ट ओरिजनल स्कोर, बेस्ट ओरिजिनल सॉंग, बेहतरीन संपादन में अपनी उपस्थिति दर्ज़ करा चुकी है और कुछ पुरस्कार जीते भी हैं.
रंगमंच के गहरे जुड़ाव रखनेवाले डैनी बोएल Slumdog Millionaire एवं 127 Hours अलावे के  Shallow Grave, 28 Days Later,  और Trainspotting जैसी फिल्मों के लिए भी जाने जाते हैं. इनकी फ़िल्में पुरस्कार के विभिन्न श्रेणियों में कुल 17 बार एकेडमी अवार्ड (आठ जीते), 7 बार गोल्डन ग्लोब अवार्ड (चार जीते), 23 बार बाफ्टा अवार्ड (नौ जीते) के लिए नामांकित हो चुकी हैं.
कुल मिलाकर एक अलग तरह के अनुभव से दर्शकों को समृद्ध करनेवाली फिल्म है और जो लोग मनोरंजन से ऊपर उठाकर अपने अनुभव को समृद्ध करना चाहें, इस फिल्म को देखें. हाँ बे-सिर-पैर वाली फिल्मों के शौक़ीन फिल्म प्रेमी सावधान रहें, इस फिल्म से आपके घुटनों में सर दर्द की शिकायत हो सकती है. इस सावधानी के बाद भी अगर आप इस फिल्म को देखना चाहें तो यकीन मानिये आप एक अच्छा काम ही करने जा रहे हैं.

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