एक विचित्र बात देखने को मिल रही है आजकल। नौजवान तबका जो कि कठोर श्रम और अपने बिंदासपने के लिए जगत प्रसिद्ध है बहुत जल्द ही निराश हो जा रहा है और कभी यह तो कभी वह के चक्कर में पड़कर अपना कीमती और बहुमूल्य समय बर्बाद कर दे रहा है। सफलता और असफलता को लेकर या तो जल्दबाज़ी का शिकार है या फिर सफलता का गूढ़ सूत्र से पूरी तरह अनभिज्ञ। यदि इंसान किसी चीज़ में असफल होते हैं इसका मतलब यह होता है कि उसने उस चीज़ में सफल होने के लिए उतना शिद्दत, ज़िद्द और सही दिशा में मेहनत नहीं दिखलाया जितने की ज़रूरत थी। सफलता-असफलता कई बार स्थितियों-परिस्थितियों पर निर्भर तो करती है लेकिन इसके ज़्यादातर ज़िम्मेदार हम खुद होते हैं, ना कि कोई दूसरा। सफलता-असफलता के सूत्र हमारे अंदर हैं, कहीं बाहर नहीं। इतिहास में ऐसे उदाहरण भरे पड़े हैं जिन्होंने अपने जुनून से पहाड़ों का सीना चाक कर दिया है। आखिर गया के गहलौत गांव के दशरथ मांझी के पास वो क्या बात थी जिन्होंने अकेले पहाड़ काटके रास्ता बना दिया। कबीर कहते हैं -
करत करत अभ्यास के जड़मति होत सुजान
रसरी आवत जात के सील पर पड़त निशान
अर्थात् अभ्यास करते करते मूर्ख व्यक्ति भी विद्वान हो सकता है जैसे कुएं में बार-बार रस्सी के आने-जाने से पत्थर पर भी निशान पड़ जाता है। इस संदर्भ में सुकरात से जुड़ी एक कथा याद आ रही है।
एक बार एक नौजवान लड़के ने सुकरात से पूछा कि सफलता का रहस्य क्या है? सुकरात ने उस लड़के से कहा कि तुम कल नदी के किनारे मिलो। वो लड़का अगले दिन नदी के किनारे सुकरात से मिला। फिर सुकरात ने नौजवान से उनके साथ नदी की तरफ बढ़ने को कहा। वे दोनों नदी में आगे बढ़ने लगे और जब आगे बढ़ते बढ़ते पानी गले तक पहुंच गया, तभी अचानक सुकरात ने उस लड़के का सिर पकड़ के पानी में डुबो दिया। लड़का पानी से बाहर निकलने के लिए संघर्ष करने लगा, लेकिन सुकरात ताकतवर थे और उसे पानी में तबतक डुबोए रखा जबतक कि वो लड़का नीला नहीं पड़ गया। फिर सुकरात ने उसका सिर पानी से निकाल दिया और बाहर निकलते ही जो काम जो काम उस लड़के ने सबसे पहले किया, वो था हांफते-हांफते तेज़ी से सांस लेना।
थोड़ा सामान्य होकर लड़के ने क्रोधित होकर सुकरात से पूछा - आप क्या मुझे मार डालना चाहते थे?
सुकरात ने शांत स्वर में पूछा - जब तुम पानी के भीतर थे तब तुम सबसे ज़्यादा क्या चाहते थे?
लड़के ने उत्तर दिया - सांस लेना।
सुकरात ने कहा - यही सफलता का रहस्य है। जब तुम सफलता को उतनी ही बुरी तरह से चाहोगे जितना कि तुम सांस लेना चाहते थे, तो वो तुम्हें मिल जाएगी। इसके अलावा इसे पाने का कोई रहस्य नहीं है।
पाब्लो कुइलो ने भी अपने विश्व प्रसिद्द उपन्यास अल्केमिस्ट में यह पंक्ति बार बार दुहराते हैं - किसी चीज़ को तुम दिल से चाहो तो पूरी कायनात तुम्हें उससे मिलाने की जिद्द ठान लेती है। इस लाइन को शाहरुख खान की एक हिंदी फिल्म ने भी खूब इस्तेमाल किया बिना पाब्लो को आभार बोले हुए।
सो निराश होने की ज़रूरत नहीं है क्योंकि हर असफलता के भीतर सफलता के सूत्र छिपे होते हैं बस ज़रूरत है उसे पहचानने और सही व सार्थक दिशा में सतत प्रयत्न करते रहने की।
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