Thursday, June 29, 2017

बाज़ार और स्वदेशी


Gadgets के बारे में पढ़ना और जानकारी इकट्ठा करना मुझे बेहद पसंद है। इसके पीछे शायद कारण यह है कि मुझे Gadgets सबसे क्रांतिकारी वैज्ञानिक अविष्कारों में से एक लगता है - ख़ासकर मोबाइल फोन। इस छोटी सी चीज़ ने अपने अंदर कितनी चिज़ों को समेट लिया है - इंटरनेट, फोन, घड़ी, म्यूज़िक प्लेयर, टाइप राइटर, कम्प्यूटर, कैलेंडर, चिट्ठी और पता नहीं कितनी चीज़ें इस छोटे से Gadget में समाहित हो गया है और आनेवाले दिनों में और पता नहीं क्या क्या इसमें जुड़ेगा। इस उपकरण के बिना आज शायद ही किसी का काम चलता हो - खासकर शहरों में। 

आज भारतीय बाजारों में एक से एक Gadgets उपलब्ध हैं लेकिन अफसोस की बात यह है कि ज़्यादातर बाजार पर विदेशी कंपनियों का कब्ज़ा है। सिर्फ Gadgets Market ही नहीं वरण आज पूरे बाज़ार पर ही विदेशी कंपनियों ने कब्ज़ा जमा रखा है और स्वदेशी के नाम पर जो कंपनियां बाज़ार में हैं उनके Product ज़्यादातर निहायत ही घटिया हैं और जो कुछ बढ़िया और ठीक-ठाक हैं - उनकी क़ीमत ज़्यादा है। शायद इसीलिए उन्हें अपने Product बेचने के लिए धर्म, भारत, भारतीयता और देशप्रेम का सहारा लेना पड़ता है और हम भारतीय इस मामले में इतने मूढ़ हैं कि जाति, धर्म और देश की बात होते ही हमारे दिल, दिमाग और आंखें बंद हो जाती हैं और हम किसी भी अंधी गली में घुस पड़ने को तत्पर हो जाते हैं। 
भारत अंग्रेज़ों की ग़ुलामी से इसलिए आज़ाद नहीं हुआ था कि विदेशी कंपनियां उसके बाज़ार पर कब्ज़ा कर लें या स्वदेशी के नाम पर रद्दी Product देशप्रेम की चाशनी में घोलकर परोसा जाए। हद तो यह है कि स्वदेशी का जाप करनेवाली हमारी सरकारें कोई मजबूत स्वदेशी infrastructure बनाने के बजाय विदेशियों और विदेशी कंपनियों को भारत आकर व्यापार करने का आमंत्रण देने में खुद को ज़्यादा सहज महसूस करती हैं। यह सबकुछ आज शुरू हुआ हो ऐसा नहीं है बल्कि इतिहास खंगालने पर पता चलता है कि हम colonial मानसिकता से शायद कभी मुक्त ही नहीं हुए और फिर सामंती मानसिकता तो हमें विरासत में मिली ही है। 
East India Company के व्यापारी खुद व्यापार करने आए थे और हम अब आज Open Market के निहायत ही बकवास और बाज़ारू आइडिया का ग़ुलाम हो अपना बाज़ार खोलकर खुद बुलावा दे रहे हैं कि आओ और हमें आर्थिक रूप से फिर से ग़ुलाम बना लो। (शायद बहुत हद तक हम बन भी चुके हैं।) वैसे काफी हद तक बना भी चुके हैं। सनद रहे कि कोई भी व्यापारी अपना फायदा पहले देखता है और उसके लिए उसे कोई भी लेबल लगाने से कोई गुरेज नहीं होता। वैसे हम पता नहीं किस अंधी दौड़ में शामिल हैं कि हमें इन सब बातों से कोई खास फर्क पड़ता भी नहीं है।

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