हिंदुस्तानी
सिनेमा के सौ साल होने के अवसर पर दादा साहेब फाल्के सम्मान के काबिल अभिनेताओं का
नाम यदि इमानदारी से लिया जाय तो उनमें से प्राण का नाम निश्चित रूप से होगा | प्राण
अर्थात प्राण कृष्ण सिकन्द, जो इस पुरस्कार के हकदार कई
दशक पहले ही हो चुके थे | प्रभावशाली
व्यक्तित्व के धनी प्राण हिंदी सिनेमा के सबसे सफल, चर्चित, नफ़ीस, रौबीले व
स्टायलिश खलनायक माने जातें हैं | जिस प्रकार दिलीप कुमार
हिंदी सिनेमा के नायक की कसौटी हैं ठीक वैसे ही प्राण खलनायक की कसौटी तय करतें
हैं | कई दशक तक हिंदी सिनेमा में अपनी लाजवाब अदाकारी से इनके चरित्रों ने इतनी
नफ़रत कमाई कि कोई भी आदमी उनके नाम पर अपने बच्चे का नाम नहीं रखता | यह एक अदाकार
की सफलता है और समाज की रुढिवादिता (मासूमियत भी) है कि अभिनेता द्वारा निभाए
चरित्र और अभिनेता के व्यक्तित्व में फर्क करना नहीं आता | ये वही मुल्क है जहाँ
लोग नहा-धोके टीवी पर रामायण देखते हैं और अरुण गोबिल और दीपिका को राम-सीता के
अलावा कोई और भूमिका में देखने को तैयार ही नहीं | इसमें भारतीय मीडिया भी कम नहीं
है जो अभिनेताओं को एक खास प्रकार के इमेज में कैद करने में कोई कसर नहीं छोडती | वैसे,
पिछले कई सालों से प्राण का नाम दादा साहेब फाल्के पुरस्कार के लिए प्रस्तावित
किया जा रहा था |
इनका नाम एक वक्त सफलता का पर्याय
बन गया था और मेहनताना नायक के बराबर था | नायक – नायिका कोई हो खलनायक प्राण होते
| मैं यहाँ प्राण के उस कमाल की बात करूगां जिस पर अभी तक किसी का ध्यान (शायद)
नहीं गया है, वो है गानों में उनका अभिनय | प्राण पर फिल्माए कुछ गीत अभिनेताओं,
निर्माता, निर्देशकों को कुछ ज़रुरी पाठ सिखातें हैं | संगीत हमारे हिन्दुस्तानी
सिनेमा का इतना ज़्यादा ज़रूरी और मुनाफेदार अंग है कि गाने की कोई परिस्थिति न होने
पर भी डाल ही दिए जातें हैं | ऐसी स्थिति में अमूमन अभिनेता ज़्यादा दिमाग नहीं लगाते
और चरित्र के बाहर आकार सीन निपटा देते हैं | किन्तु एक सोचने समझनेवाले अभिनेता
की स्थिति खराब हो जाती है | उसे समझ नहीं आता कि अपने चरित्र में रहते हुए इन
गानों को कैसे निभाए | हिन्दुस्तानी सिनेमा के अभिनेता-अभिनेत्री अमूमन चरित्रांकन
( Characterization ) पर कोई खास घ्यान नहीं देते और यदि
देते भी है तो ऐसे बहुत कम अभिनेता और गाने हैं जिन्हें चरित्र में रहते हुए
निभाया हो | प्राण के तीन गाने - कसमे वादे प्यार वफ़ा सब बातें हैं बातों का
क्या (उपकार), यारी है ईमान मेरा यार
मेरी ज़िंदगी (जंजीर) और आके
सीधी लगी दिल पे जैसे कटरिया (चलती का नाम गाड़ी) इस बात के उदाहरण के लिए देखे
जा सकतें है कि एक अभिनेता अपने चरित्र में रहते हुए गानों को कैसे निभाता है | यह
पोएटिक से नैरेटिव और नैरेटिव से पोएटिक फॉर्म में समाहित होने की प्रक्रिया भी है
|
युवावस्था
में स्टिल फोटोग्राफी में कैरियर के लिए प्रयासरत प्राण का जन्म पुरानी दिल्ली के
बल्लीमारान (कोट्गढ़) में 12 फरवरी 1920 को हुआ | उनकी पहली फिल्म पंजाबी भाषा में थी जट
यमला (1940, निर्देशक मोती बी. गिडवान) | सन 2001 में
पद्म भूषण सम्मान से सम्मानित प्राण ने अपनी बढ़ती उम्र को सम्मान देते हुए सन 1998
में सिनेमा से सन्यास लेने की घोषणा की | उनकी आखिरी फिल्म तुम जियो हज़ारों साल
(2002) है
| वर्तमान में 94
वर्षीय प्राण का फ़िल्मी सफ़र लगभग छप्पन वर्षों का रहा | इस
दौरान उन्होंने हिंदी, पंजाबी, बंगला भाषा की लगभग 400
से भी ज़्यादा फिल्मों में अभिनय किया जिनमें – चोरी-चोरी, हलाकू
(1956), मधुमती (1958), जिस देश में गंगा बहती है (1960),
जब प्यार किसी से होता है (1961), हाफ टिकट (1962), शहीद, गुमनाम, खानदान (1965),
लव इन टोकियो, दो बदन (1966), राम और श्याम, पत्थर के सनम, उपकार (1967),
आदमी, साधू और शैतान (1968), आंसू बन गए फूल (1969),
जॉनी मेरा नाम, भाई-भाई (1970), विक्टोरिया नंबर 203,
परिचय, बे-ईमान (1972), जंज़ीर, बॉबी (1973),
अमर अकबर अंथनी (1977), डान ((1978), दोस्ताना (1980), नसीब, कालिया (1981),
नौकर बीबी का, अंधा कानून, नास्तिक (1983), दुनियां, शराबी (1984)
आदि इनकी कुछ चर्चित फ़िल्में हैं | उपकार, आँसू बन गये फूल और बेईमान नामक फिल्म के लिए इन्हें
सर्वश्रेष्ठ सहायक अभिनेता का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला | वे अपनी फिल्मों बर्खुरदार नामक शब्द का अक्सर प्रयोग करते थे, कहा जाता
है कि ये उनका प्रिय शब्द है | पर्दे पर बुरे चरित्रों को निभानेवाले प्राण
व्यक्तिगत ज़िंदगी में एक सहज, सरल और मददगार व्यक्ति के रूप में प्रसिद्ध हैं |
केन्द्र सरकार के द्वारा सिनेमा के क्षेत्र में संवर्धन और विकास में
उल्लेखनीय योगदान के लिए दिए जानेवाले इस पुरस्कार की स्थापना सन 1969 में दादा साहेब फाल्के की सौवीं जयंती के अवसर पर की गई | 1969 से 2011 तक इस पुरस्कार की
क्रमवार सूची में देविका रानी, बी. एन. सरकार, पृथ्वीराज कपूर, पंकज मल्लिक, रूबी
मेयर्स, बोमिरेद्दी नरसिम्हा रेड्डी, धीरेन्द्रनाथ गांगुली, कानन देवी, नितिन बोस,
रायचंद बोराल, सोहराब मोदी, पी. जयराज, नौशाद अली, एल. बी. प्रसाद, दुर्गा खोट,
सत्यजित राय, वी. शांताराम, वी. नागी रेड्डी, राजकपूर, अशोक कुमार, लता मंगेशकर,
ए. नागेश्वर राव, भालजी पेंढारकर, भूपेन हजारिका, मजरूह सुलतानपूरी, दिलीप कुमार,
राजकुमार, शिवाजी गणेशन, प्रदीप, बी. आर. चोपड़ा, हृषिकेश मुखर्जी, आशा भोसले, यश
चोपड़ा, देव आनंद, मृणाल सेन, अदूर गोपालकृष्णन, श्याम बेनेगल, तपन सिन्हा, मन्ना
डे, वी. के. मूर्ति, डी. रामानायडू, के. बालाचंदर, सौमित्र चटर्जी के नाम आतें हैं
| मोहम्मद रफ़ी, व्ही शांताराम, किशोर कुमार, ऋत्विक घटक, मणि कौल आदि नामों का इस
सूची में अब तक शामिल न होना चकित करता है | क्या यह उचित नहीं होता कि भारतीय
सिनेमा के सौ साल होने के अवसर पर एक से अधिक लोगों को ये सम्मान प्रदान किया जाता
| वहीं, सम्मानित होनेवालों में अभिनेता-अभिनेत्री, गायक-गायिका, संगीतकार-गीतकार,
निर्माता-निर्देशक, छायाकार, पटकथा लेखक के नाम तो हैं पर अभी तक किसी फिल्म
समीक्षक को यह पुरस्कार नहीं मिला है | क्या फिल्म समीक्षा को क्रिएटिव काम नहीं
माना जाता या सच में अभी तक कोई ऐसा फिल्म समीक्षक हुआ ही नहीं जिसे सम्मानित किया
जा सके ?
बहरहाल, आज प्राण की शारीरिक स्थिति ऐसी नहीं है कि वे
मुम्बई से दिल्ली आकर पुरस्कार ले सकें | ऐसे में फिल्म अभिनेता मनोज कुमार की यह
मांग एकदम जायज है कि प्राण को यह पुरस्कार मुंबई में ही प्रदान किया जाय | यह न
केवल एक बेहतरीन अदाकार को सम्मान होगा बल्कि यह सिनेमा का भी सम्मान होगा |
ज्ञातव्य हो कि यह सम्मान राष्ट्रपति द्वारा प्रदान किया जाता है और इससे पहले ऐसा
हो चुका है, सत्यजित राय को यह सम्मान कोलकाता जाकर दिया गया था |
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