इसमें कोई संदेह नहीं कि मुंशी प्रेमचंद के नाम पर ही पटना के राजकीय प्रेमचंद
रंगशाला का नामांकन किया गया है । रंगशाला से सटे एक चौराहा है । इस चौराहे को
प्रेमचंद गोलंबर कहते हैं । इस गोलंबर के एक तरफ़ मोइनुल हक स्डेडियम है और दूसरी
तरफ़ प्रेमचंद रंगशाला । गोलंबर के बीचो-बीच मुंशी प्रेमचंद की मूर्ति लगी है । कहा
जाता है कि पटना शहर के संस्कृतिकर्मियों, बुद्धिजीवियों, साहित्यकारों आदि के
मांग पर यह मूर्ति स्थापित हो पाई थी । लोग तो यह भी कहते हैं कि एक बार किसी
कार्यक्रम में प्रेमचंद के पुत्र और साहित्यकार अमृतराय पटना आए हुए थे । उन्होंने
इस बात पर राय ज़ाहिर करते हुए कुछ ऐसा वक्तव्य दिया था कि एक बेटे के लिए इससे बड़ी
शर्म की बात और क्या हो सकती है कि वो अपने पिता की मूर्ति लगाने की मांग सरकार से
करे ।
अमृतराय पटना कब आए थे और उन्होंने ये बातें कब और कैसे कही थी, यह बात कही
भी थी कि नहीं, इस बारे में कोई सटीक जानकारी कम से कम मेरे पास नहीं है । यह सुनी
सुनाई बातें हैं । जो सच हो भी सकतीं हैं और मनगढंत भी हो सकता है । बहरहाल, आज भी
प्रेमचंद की मूर्ति के नीचे एक पट्टिका लगी है जिस पर यह अंकित है कि “उपन्यास
सम्राट मुंशी प्रेमचंद की इस प्रस्तर प्रतिमा का अनावरण 8
अक्टूबर 1980 को महादेवी वर्मा ने किया । संयोजक साहित्यकार रमण” । गोलंबर
चारो तरफ़ से लौह-उक्त दीवार से घिरा है और प्रवेश द्वार अमूमन सालों भर बंद ही
रहता है । इसकी देखरेख का ज़िम्मा किसके ऊपर है, पता नहीं । वैसे गांधी मैदान की
दीवार भी ऊँची कराई गई है और उसमें लोहे के भाले लगाए जा रहे हैं और सुना है कि
वहां भी ताला लगनेवाला है । आनेवाले दिनों में यह भी हो सकता है कि गांधी मैदान
में घुसने लिए कीमत अदा करना पड़े ! रूपक, अप्सरा, उमा सहित कई सिंगल स्क्रीन के
सिनमाघरों में ताले तो झूल ही रहे हैं ।
31
जुलाई 2013, यानि प्रेमचंद की जयंती का दिन । बिहार संगीत नाटक
अकादमी में व्याप्त भ्रष्टाचार और अराजकता के खिलाफ़ समस्त संस्कृतिकर्मी का आन्दोलन
चल रहा था । 31 जुलाई को प्रेमचंद रंगशाला चलो का आह्वान किया जा चुका
था । तय हुआ कि 30 जुलाई को प्रेमचंद गोलम्बर की सफ़ाई भी की जाय । तय
कार्यक्रम के अनुसार कुछ संस्कृतिकर्मी प्रेमचंद गोलम्बर के अंदर झाड़ू और कुदाल
लेकर घुस गए और गोलंबर के अंदर से पौधों, लत्तर, दारु की बोतलें, फटे पुराने कपड़े
और पता नहीं क्या-क्या को निकल-निकालकर बाहर जलाने और फेंकने लगे । कूड़ा और गन्दगी
इतनी ज़्यादा थी कि अपनी तमाम चाहतों के बावजूद संस्कृतिकर्मी आगे का आधा भाग ही
साफ़ कर पाए । लगता था जैसे वर्षों से यहाँ सफाई नहीं हुई थी ! गोलंबर के अंदर दो
पोल गड़े थे । इन पोलों पर अनगिनत विज्ञापनों के बैनर टगें पड़े थे, जिसे संस्कृतिकर्मियों
ने डंडे से खींच-खींचकर हटाया । सफाई के पश्चात बगल से पानी लाकर गोलंबर की धुलाई
की गई । मुंशी जी की मूर्ति की भी सफाई हुई जो उजाले से काले रूप में परिवर्तित
होने की ओर अग्रसर था ।
दूसरे दिन यानि 31 तारीख की सुबह संस्कृतिकर्मी जब माल्यार्पण के लिए
पहुंचे तो पाया कि कुछ लोग पहले से ही उस जगह पर कब्ज़ा जमा लिया है और मुंशी जी की
मूर्ति पर गेंदे की मालाओं का ढेर लगाने के पश्चात् उपस्थित छात्रों को मुंशी
प्रेमचंद के बारे में बड़े गर्व से व्याख्यान भी चल रहा था । आसपास गाडियां शोर
मचाती निकाल रही थीं और संस्कृतिकर्मी सोच रहे थे कि वो लोग हटें तो हम भी मुंशी
प्रेमचंद की प्रतिमा पर माल्यार्पण करें । किन्तु उपस्थित सज्जनों के मिज़ाज को देखकर
ऐसा प्रतीत नहीं हो रहा था कि वो जल्द हटानेवाले हैं । अन्तः संस्कृतिकर्मी किसी
प्रकार माल्यार्पण करके प्रेमचंद रंगशाला की ओर चल पड़े जहाँ दिन भर सांस्कृतिक
प्रतिरोध होना था । इस पूरे आयोजन में पटना के कुल दो साहित्यकारों ने शिरकत की और
बिहार संगीत नाटक अकादमी को तो प्रेमचंद से कोई सरोकार ही नहीं । ज्ञातव्य हो कि
पटना के संस्कृतिकर्मी हर साल प्रेमचंद की जयंती मनाते रहे हैं ।
प्रेमचंद गोलंबर की आधी सफाई करते-करते संस्कृतिकर्मियों में सो कोई मज़ाक
में बोल उठा कि गोलंबर की आधी सफाई तो हमने कर दी बिहार संगीत नाटक अकादमी और
संस्कृति-साहित्यिक-जनवादी विभागों और दलों की सफाई कौन करेगा ?
कल 01/अगस्त/2014 को आपकी पोस्ट का लिंक होगा http://nayi-purani-halchal.blogspot.in पर
ReplyDeleteधन्यवाद !
उफ़ क्या हाल कर देते हैं लोग ... पहले मान फिर क्या बुरा हाल होता है सब जानकार भी कुछ नहीं जाते ..
ReplyDeleteप्रेमचंद जयंती पर सामयिक चिंतनशील प्रस्तुति हेतु धन्यवाद ..