नीदरलैंड के निर्देशक Bert Haanstra निर्देशित एक विश्वप्रसिद्ध शॉट फिल्म है Glass. इस फिल्म का निर्माण सन 1958 में हुआ था, फिल्म कि अवधी मात्र 10 मिनट है। फिल्म दो भागों में है। पहले भाग में बड़ी ही सुंदरतापूर्वक कारीगर की कारीगरी से एक से एक रंगीन ग्लास को अलग-अलग शेप लेते हुए दिखाया गया है, वहीं दूसरे भाग में मशीन के द्वारा बड़े ही तकनीकी ढंग से ग्लास शेप ले रहा होता है। हालांकि इससे इंकार नहीं कि दूसरे भाग में काम बड़ी ही तेज़ी से हो रहा होता है लेकिन कोई गडबड़ी होने पर नुकसान भी ज़्यादा दूसरे भाग में होता है। फिल्म का पार्श्व संगीत (Background Music) भी कमाल का है और दृश्य के साथ ना केवल प्रभाव उत्पन्न कर रहा होता है बल्कि अपने आपमें एक भाषा का निर्माण भी बखूबी कर रहा होता है। पहला भाग मानव और मानवीय कला का प्रतीक है तो दूसरा भाग मशीन और उद्योगिक क्रांति की ताकत का। विश्व भर में बहुचर्चित इस फिल्म ने 1959 में Academy Award for Documentary Short Subject का पुरस्कार भी जीता था।
इस बात से इनकार नहीं कि औधोगिक क्रान्ति ने मशीनीकरण को बढ़ावा दिया है और बहुत सारी चीज़ों के उत्पादन में तेज़ी, सहजता और गुणवत्ता के साथ ही साथ समय की बचत का नायब नमूना पेश किया है, लेकिन साथ ही साथ यह भी सच है कि बहुत सारी मानवीय हस्त कलाओं का बड़ी ही बेदर्दी से गला भी घोंटा है। इंसान इनके लिए कलाकारी और उसका रसास्वादन करनेवाला कलाकार और कलाप्रेमी नहीं बल्कि एक उपभोक्ता मात्र है, जो पैसे खर्च करके उत्पाद का उपभोग मात्र करता है।
एतिहासिक सच है कि मानव के विकास में श्रम की भूमिका अतुलनीय रही है। लेकिन यदि बाज़ारवाद के क्रूर चंगुल में फंसकर मानव केवल एक उपभोक्ता मात्र के रूप में परिवर्तित हो जाए तो उसकी विकास प्रक्रिया में अप्राकृतिक अवरोध पैदा होता है, और इससे केवल शारीरिक ही नहीं वरण मानसिक, मानवीय और बौधिक विकास भी प्रभावित होता है।
आज कई ऐसी कलाएं हैं जो मशीनीकरण और बाज़ारवाद का शिकार होकर का या तो खत्म हो गईं या खत्म होने के कगार पर हैं। इन कलाओं की चिंता ना सरकारों को है, ना उद्योगपतियों को और ना ही समाज के ज्यादतर तबकों (जाति, धर्म, समुदाय) को ही। समाज तो पता नहीं किस बात की तेज़ी में जी रहा है कि उसके पास सही-गलत सोचने तक का वक्त अब नहीं रह गया है। कलाओं की बात की जाय तो वहां सामाजिक स्तर पर बड़ी ही खतरनाक उदासीनता है।
Bert Haanstra निर्देशित एक और शॉट फिल्म Zoo भी एक कमाल की फिल्म है लेकिन इस फिल्म पर बात फिर कभी। अभी आप ग्लास नामक यह फिल्म इस लिंक को क्लिक करके देख सकते हैं – अगर नहीं देखें हैं तो। फिल्म देखने के लिए यहाँ क्लिक करें.
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