इधर झारखण्ड में राष्ट्रपति शासन लगने की घोषणा
हुई उधर झारखण्ड की राजधानी राँची में झारखण्ड स्टेट क्रिकेट एशोसिएशन (
जेएससीए ) के स्टेडियम का सामूहिक उद्घाटन किया गया | भारतीय क्रिकेट महानगरों
से निकलकर छोटे शहरों की ओर उन्मुख हो रहा है ये कितना शुभ और अशुभ संकेत है ये तो
समय ही बताएगा लेकिन इसके पीछे कहीं न कहीं अत्याधिक क्रिकेट खेलना और छोटे शहरों
को भी क्रिकेट बाज़ार की गिरफ़्त में लेकर अपना साम्राज्य स्थापित करना भी है |
कारपोरेट क्लब क्रिकेट के आज के युग में ये कहना कि क्रिकेट केवल एक खेल है बाकी
कुछ नहीं, समसामयिक वक्तव्य नहीं लगता | अब यहाँ अर्थ, काम, मदिरा, सट्टेबाजी के
साथ जोड़-तोड़ की एक सामानांतर सत्ता है और महिला क्रिकेट - पुरुष क्रिकेट, लोकल क्रिकेट - कारपोरेट क्रिकेट - अंतर्राष्ट्रीय क्रिकेट का भेद भाव भी है |
एक क्षेत्रीय पार्टी के दिवासपनों की वजह से अगर सरकार न गिरी होती तो इस स्टेडियम का उद्घाटन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के महान ‘उदारवादी’ नेता करनेवाले थे ! भारतीय राजनीति में इधर कुछ ऐसी क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व और वर्चस्व बढ़ा है जिनका मूल सिद्धांत सत्ता सुख भोगना है | इसके लिए वे किसी से भी हाथ मिला सकते हैं | ज्ञातव्य हो कि विधायकों की खरीद फरोख्त और बंधक बनाने का हास्यापद खेल भी यहाँ खेला जा चुका है | बहरहाल, आज से बारह साल पहले झारखंडी अस्मिता के नाम पर बिहार से अलग होकर झारखण्ड अस्तित्व में आया था | इस दौरान कुल आठ सरकारें बनी और अब तक तीन बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है, वहीं एक से एक बड़े नेताओं ने छोटे-बड़े घोटालों में अपना नाम शामिल करके दिखा दिया कि हम किसी से कम नहीं है | राष्ट्रपति शासन लगने के साथ ही साथ भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान और झारखण्ड के ‘सपूत’ महेंद्र सिंह धोनी ने टॉस जीता और भारतीय दल के फिल्डिंग करने के फैसले के साथ ही राँची में नवनिर्मित स्टेडियम में क्रिकेट का जूनून भरा खेल शुरू हो गया |
एक क्षेत्रीय पार्टी के दिवासपनों की वजह से अगर सरकार न गिरी होती तो इस स्टेडियम का उद्घाटन भारतीय लोकतंत्र के इतिहास के महान ‘उदारवादी’ नेता करनेवाले थे ! भारतीय राजनीति में इधर कुछ ऐसी क्षेत्रीय पार्टियों का अस्तित्व और वर्चस्व बढ़ा है जिनका मूल सिद्धांत सत्ता सुख भोगना है | इसके लिए वे किसी से भी हाथ मिला सकते हैं | ज्ञातव्य हो कि विधायकों की खरीद फरोख्त और बंधक बनाने का हास्यापद खेल भी यहाँ खेला जा चुका है | बहरहाल, आज से बारह साल पहले झारखंडी अस्मिता के नाम पर बिहार से अलग होकर झारखण्ड अस्तित्व में आया था | इस दौरान कुल आठ सरकारें बनी और अब तक तीन बार राष्ट्रपति शासन लग चुका है, वहीं एक से एक बड़े नेताओं ने छोटे-बड़े घोटालों में अपना नाम शामिल करके दिखा दिया कि हम किसी से कम नहीं है | राष्ट्रपति शासन लगने के साथ ही साथ भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान और झारखण्ड के ‘सपूत’ महेंद्र सिंह धोनी ने टॉस जीता और भारतीय दल के फिल्डिंग करने के फैसले के साथ ही राँची में नवनिर्मित स्टेडियम में क्रिकेट का जूनून भरा खेल शुरू हो गया |
हेवी इंजीनियरिग कारपोरेशन ( एचआईसी ) द्वारा
प्रदत् ज़मीन पर निर्मित इस स्टेडियम के उद्घाटन कार्यक्रम में स्टेडियम का
शिलान्यास करने वाले झारखण्ड के एक कद्दावर नेताजी तक को नज़रंदाज़ कर दिया गया | हाईकोर्ट
का निर्देश था कि इस स्टेडियम से आम जन को दूर नहीं रखा जायेगा और उन्हें भी
अभ्यास करने दिया जायेगा | स्टेडियम
के नामकरण में एचईसी और उसके लोगो के प्रयोग किये जाने का भी वादा था, पर वादे हैं
वादों का क्या ! अब वर्तमान व्यवस्था में जो संस्थान नेताओं और एचईसी जैसों को भाव
नहीं देता वो गरीबी, भुखमरी, शोषण की मार झेलते आमजन को कितना भाव देगा इसका सहज
अनुमान लगाया जा सकता है | जिस राज्य के हुक्मरानों को मुफ़्तखोरी की आदत पड़ चुकी
हो वहाँ आमजन की चिन्ता है ही किसे !
मुफ़्त के टिकट और पास पाके अपने को विशिष्ट
समझना एक बीमार समाज और मानसिकता का घोतक है | राँची स्टेडियम की कुल क्षमता करीब
38,000 दर्शकों की है जिसमें
लगभग आधी सीटों की मुफ़्तखोरी हुई | इस मुफ़्तखोरी में शासक वर्ग बेशर्मी की हद तक
शामिल हुआ | जैसा कि ज़ाहिर है कि शासकवर्ग की अय्याशियों की कीमत भी आम आदमी ही
चुकता है सो जो टिकट बेचे गए वो ज़रूरत से ज़्यादा मंहगे थे | ऐसी ख़बरें भी आई कि
कुछ लोगों ने अपने पासों की कालाबाज़ारी भी की और उन्हें कई गुना बढ़ी कीमत पर बेचा
| इस कृत में कुछ मीडियाकर्मियों के संलग्न होने की खबरें भी आईं |
क्रिकेट के लिए ये भी सही |
दफ्तर, स्कूल, कॉलेज आदि में छुट्टी का माहौल रहा, जैसे कोई
राष्ट्रीय पर्व हो | राष्ट्रपति शासन के लिए न सही क्रिकेट मैच के लिए ही सही |
छुट्टी तो छुट्टी होती है | चाहे जिस भी एवज में हो ! जन्मदिन पर हो या मरणदिन,
क्रिकेट हो या राष्ट्रपति शासन |
सरकार गिर गई, राष्ट्रपति शासन लग गया, क्रिकेट मैच के लिए जनता दीवानी हो गई पर आश्चर्य कि इस मुद्दे पर किसी तरह की कोई प्रखर जन प्रतिक्रिया देखने या सुनने को नहीं मिली ! तो क्या यह जनता की सरकार नहीं थी, या क्रिकेट का जूनून किसी भी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक मुद्दे से बड़ा है | इस प्रजातंत्र में विश्वास करने वाले तो चुनाव से जीती सरकार को अंधभक्त की तरह जनता की सरकार मानतें हैं और सरकार की जनविरोधी नीतियों के लिए नेताओं और तंत्र को दोषी मानतें हैं, व्यवस्था को नहीं ! तो क्या प्रजातंत्र के वर्तमान बुनावट में ही कोई खतरनाक समस्या नहीं है कि जहाँ जनता की ज़रूरत वोट बैंक और यदा-कदा जनसेवा करके जनता की सरकार कहलाने की मान्यता के लिए है ! जनता भी समय-समय पर कुछ कम कमाल नहीं करती ! क्रिकेट सितारों को देखने और क्रिकेट मैच के टिकट कटाने के लिए तो कड़कड़ाती ठण्ड को भी मात दे देती है पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक मुद्दे पर यही जूनून बेचारगी में बदल जाती है | प्रतिरोध के स्थान पर कोरी भावुकता और मासूमियत का बोलबाला हो जाता है और हम निरीह आमजन क्या कर सकतें हैं का एकालाप शुरू हो जाता है | वर्तमान समय में भारतीय राजनीति ( संसदीय व गैर संसदीय ) ने जनता का विश्वास खो दिया है ? वर्तमान में ऐसी हवा भी चलने लगी है जहाँ लोग बिना किसी पार्टी के झंडे के सड़कों पर उतारे, पुरज़ोर आंदोलन भी किया और पार्टियों के पास अंगूर खट्टे हैं का जाप करने के सिवा और कोई चारा नहीं बचा |
सरकार गिर गई, राष्ट्रपति शासन लग गया, क्रिकेट मैच के लिए जनता दीवानी हो गई पर आश्चर्य कि इस मुद्दे पर किसी तरह की कोई प्रखर जन प्रतिक्रिया देखने या सुनने को नहीं मिली ! तो क्या यह जनता की सरकार नहीं थी, या क्रिकेट का जूनून किसी भी आर्थिक, सामाजिक, राजनीतिक मुद्दे से बड़ा है | इस प्रजातंत्र में विश्वास करने वाले तो चुनाव से जीती सरकार को अंधभक्त की तरह जनता की सरकार मानतें हैं और सरकार की जनविरोधी नीतियों के लिए नेताओं और तंत्र को दोषी मानतें हैं, व्यवस्था को नहीं ! तो क्या प्रजातंत्र के वर्तमान बुनावट में ही कोई खतरनाक समस्या नहीं है कि जहाँ जनता की ज़रूरत वोट बैंक और यदा-कदा जनसेवा करके जनता की सरकार कहलाने की मान्यता के लिए है ! जनता भी समय-समय पर कुछ कम कमाल नहीं करती ! क्रिकेट सितारों को देखने और क्रिकेट मैच के टिकट कटाने के लिए तो कड़कड़ाती ठण्ड को भी मात दे देती है पर सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक मुद्दे पर यही जूनून बेचारगी में बदल जाती है | प्रतिरोध के स्थान पर कोरी भावुकता और मासूमियत का बोलबाला हो जाता है और हम निरीह आमजन क्या कर सकतें हैं का एकालाप शुरू हो जाता है | वर्तमान समय में भारतीय राजनीति ( संसदीय व गैर संसदीय ) ने जनता का विश्वास खो दिया है ? वर्तमान में ऐसी हवा भी चलने लगी है जहाँ लोग बिना किसी पार्टी के झंडे के सड़कों पर उतारे, पुरज़ोर आंदोलन भी किया और पार्टियों के पास अंगूर खट्टे हैं का जाप करने के सिवा और कोई चारा नहीं बचा |
माना की राँची में पहली बार क्रिकेट मैच का आयोजन हो रहा था
पर लोगों ने जिस तरह से इस हाड़ कांपती कडकती सर्दी में टिकट के लिए आधी रात को
कम्बल लेकर और आग जलाकर लाईन लगाया वो अपने-आप में अद्भुत और अविश्वसनीय था |
नेतागन भी पास और टिकट के जुगाड़ में रूठते और मानते रहे बजाय झारखण्ड और राजनीति
की चिंता करने के | टिकट काउंटर खुलने के दिन से लेकर मैच के दिन तक प्रशासन के
सामने ही खुलेआम टिकटों की कालाबाज़ारी चलती रही | 1200 रु. के टिकट 5000
रु. तक में बेचे गए | वहीं लोकतंत्र के चौथे खम्भे ने इन दिनों अपने पन्नों पर लोक की जगह
क्रिकेट का जूनून और तंत्र की जगह पर गिल्ली, डंडा, बल्ले और गेंद को बैठा दिया है
| जब से भारत और इंग्लैड के खिलाड़ी राँची में आए तब से पल-पल की खबरों और क्रिकेट
के दीवानों की तस्वीरों से भर गया है सारा अखबार और राष्ट्रपति शासन समेत तमाम ख़बरों
ने विज्ञापनों से बची जगहों को भरने का काम किया | यहाँ तक कि बलात्कार का मुद्दा
भी गेंद और बल्ले की कशमकश में गुम हो गया |
कोई किसी से कम नहीं |
बहरहाल, राँची में भारतीय क्रिकेट टीम ने शानदार तरीके से जीत दर्ज़ किया और एक बार फिर दुनियां में नंबर एक बन गयी | इस उपलब्धि को हासिल करने के एवज में लोगों ने जम के जश्न मनाया, नागरिकों ने अखंड कीर्तन तक का आयोजन कर डाला | वहीं देसी-विदेशी खिलाडियों को एक नज़र देख भर लेने के लिए लोगों ने पत्थर फेकें, पुलिस के डंडे खाए | धोनी के घर के आगे भीड़, होटल के आगे भीड़, रास्ते में भीड़, भीड़ ही भीड़ | जिसकी जैसे चली सबने अपना रोब चलाया | आरक्षित सीटों पर सेना ने रिज़र्व का स्टिकर चिपकाया और दूसरों के उधर आने पर जमकर रोब कटा | मंत्री-विधायक, अख़बारों के सम्पादक, पत्रकार, अधिकारीगण, ठेकेदार, उद्योगपति आदि पास के लिए मुंह फुलाए रहे | बिना इस बात की चिंता किये कि गरीबी, बदहाली, कुशासन, राष्ट्रपति शासन आदि झेलता झारखण्ड दिन ब दिन किस अँधेरी गुफा में जा रहा है | बहरहाल, क्रिकेट टीम झारखण्ड से फुर्र हो चुकी है और राष्ट्रपति शासन को सुचारू रूप में चलाने के लिए अधिकारियों का आगमन हो चुका है | इधर नेताओं के लिए अब भी रास्ता खुला है कि बहुमत साबित करें और सत्ता सुख का आनंद लें |
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