भारत एक बहुलतावादी संस्कृति का देश है। यहां पग-पग पर पानी और वाणी बदल जाता है। कोई अगर किसी एक संस्कृति को ही भारतीय संस्कृति मानता है तो यह उसकी मूढ़ता है या फिर वो बाकियों में मूढ़ता का प्रचार करके अपनी राजनैतिक महत्वाकांक्षा पूरी करना चाहता है। नफ़रत के बीज के पोषक अमूमन यह कार्य करते हैं।
इस मुल्क़ में बहुत से समुदाय एकदम भिन्न हैं। इन समुदायों के बारे में तथाकथित सभ्य समाज की जानकारी बहुत ही कम है और वो अमूमन उन्हें हीन भावना से भी देखता है। वैसे बिना जाने समझे पूजने या नफ़रत करने की एक समृद्ध भारतीय परम्परा रही है। विचार और व्यवहार का फर्क समझने की शक्ति तो कमतर है ही। हम कुतर्क करना तो बख़ूबी जानते हैं लेकिन मिथ्या भाषण या प्रचार और व्यवहारिक कार्य में फ़र्क को बड़ी मुश्किल से ही समझ पाते हैं। हमें ज्ञान के बजाय मूढ़ता का ही गुमान होता है और इसी मूढ़ता का फ़ायदा चंद चालक लोग बड़ी ही आसानी से उठा लेते हैं। बहरहाल, बात तो रही थी सांस्कृतिक भिन्नता की तो एक समुदाय है मसान योगियों का।
जो मशान जगाता (कम से कम मान्यता तो यही है) है उसे मशान जोगी कहते हैं। हम अमूमन इन्हें अघोरी के नाम से जानते हैं और इनसे दूर रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि काल भैरव के ये उपासक तंत्र-मंत्र के काली विद्यायों में महारत हासिल रखते हैं। वैसे ऐतिहासिक रूप से इन योगियों की उत्पत्ति हैदराबाद के पूर्व निजाम के शासनकाल में माना जाता है। यह समुदाय पारंपरिक रूप से अंत्योष्टि से जुड़े धार्मिक कर्मकांड करनेवाला वर्ग माना जाता है। श्मशान ही इनका ठिकाना होता है और इनका जीवन दान-दक्षिणा से ही चलता है। श्मशान के उपासक मसान योगी श्मशान के देवता माने जाते हैं। ये ज्वालामुखी (चिता) की आग का इस्तेमाल करते हैं, इसीलिए कुछ समय पहले तक रसोई की आग इनके लिए पूर्णतः प्रतिबंधित थी। वैसे इनको लेकर आज भी एक रहस्यमय वातवरण ही है। वर्ष 2011 की जनगणना में इनकी कुल संख्या 27,000 दर्ज़ की गई है। वैसे बदले समय में इस समुदाय के कुछ लोग अब आम ज़िन्दगी का हिस्सा भी बनने लगे हैं।
इस समुदाय के बारे में आज भी कई तरह की भ्रांतियां हैं। जिसका मूल आधार धर्म और अंधविश्वास ही है। अब एक भ्रांति यह है कि ये श्मशान को जागृत करते हैं और ये अपनी शक्ति से मृत व्यक्ति को भी जीवित कर सकते हैं। तंत्र-मंत्र साधना भी इनकी क्रियायों में शामिल हैं। जिसका लाभ किसको कैसे मिलता है, यह एक विचित्रता भरी परिकल्पना है। बहरहाल, इनके अनुसार शमशान को निम्नलिखित दस प्रकारों से जागृत किया जाता है -सफेदा ,यमदंड, सुकिया, फुलिया, हल्दिया कमेदिया, कीकिचिया, मिचमिचिया, सिलासिलिया, पिलिया। ये नाम उन 10 शक्तिशाली प्रेत शक्तियों के हैं जो कि शमशान साधना के अधिपति होते हैं। इनकी मान्यता के अनुसार इन्ही प्रेत शक्तियों के बल के माध्यम से श्मशान की ख़ामोशी में अभिचार कर्म, भूतप्रेत , पिशाच, बेताल, भैरव, आदि के मंत्र सिद्ध किये जाते हैं।
इनके अनुसार शमाशान के सेनापति महिषासुर और धूम्रलोचन को माना जाता है और मुख्य गणश्मशान भैरव और रक्त चामुण्डा काली होती है। वैसे और मशान वीरों की भी सिद्धि की जाती हैं जिनका स्वरुप घनश्याम, भयानक, दीर्घ देह, बड़े बड़े केश और सघन बड़ी लोम्राशी, हाथ में वज्र और पाश, नग्न पाद, चमड़े की लंगोट धारण किये हुए है। ये दुनियां के बने बनाए नियम नहीं मानते और निषिद्ध से निषिद्ध चीज़ों को अपने भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं।
ये कई प्राकर के विचित्र साधना करते हैं। इनके अनुसार अघोर साधना, काल भैरव साधना, श्मशान जागरण साधना, आसन कीलने की साधना, उग्र काली साधना, 52 भैरव और 52 वीर और 56 कलुवा वीरों की साधना, महाउग्र तारा साधना, श्मशान काली साधना, मरघट चंडी साधना, तांत्रिक षट्कर्म आदि श्माशान में की जाने वाली प्रमुख साधनाएं है। इनके अतिरिक्त वीर साधन एक अति महत्वपूर्ण साधना है।
फिल्मों, सीरियलों, दंतकथाओं आदि ने इनके बारे में इतने डरवाने छवि प्रस्तुत किए हैं कि किसी भी साधारण इंसान को इनके आस पास फटकने में भी भय घेर लेता है लेकिन कुछ समय इनके पास गुजारिए तो इनके आसपास रचा झूठ का तिलिस्म खंडित होने लगता है और पता चलता है कि ये भी हम और आपकी तरह एक साधारण मानव ही हैं और बड़े-बड़े तंत्र-मंत्र जानने और विचित्र-विचित्र कार्य को सम्पन्न करने का दावा प्रस्तुत करनेवाले इन अजीब वेशभूषा धारियों के आडम्बर के नीचे एक साधारण मानव का ही निवास है। वैसे भी अघोर का अर्थ समझाते हुए एक अघोरी कहते हैं - जो घोर नहीं बल्कि सरल हो।
इस मुल्क़ में बहुत से समुदाय एकदम भिन्न हैं। इन समुदायों के बारे में तथाकथित सभ्य समाज की जानकारी बहुत ही कम है और वो अमूमन उन्हें हीन भावना से भी देखता है। वैसे बिना जाने समझे पूजने या नफ़रत करने की एक समृद्ध भारतीय परम्परा रही है। विचार और व्यवहार का फर्क समझने की शक्ति तो कमतर है ही। हम कुतर्क करना तो बख़ूबी जानते हैं लेकिन मिथ्या भाषण या प्रचार और व्यवहारिक कार्य में फ़र्क को बड़ी मुश्किल से ही समझ पाते हैं। हमें ज्ञान के बजाय मूढ़ता का ही गुमान होता है और इसी मूढ़ता का फ़ायदा चंद चालक लोग बड़ी ही आसानी से उठा लेते हैं। बहरहाल, बात तो रही थी सांस्कृतिक भिन्नता की तो एक समुदाय है मसान योगियों का।
जो मशान जगाता (कम से कम मान्यता तो यही है) है उसे मशान जोगी कहते हैं। हम अमूमन इन्हें अघोरी के नाम से जानते हैं और इनसे दूर रहने में ही अपनी भलाई समझते हैं। क्योंकि ऐसी मान्यता है कि काल भैरव के ये उपासक तंत्र-मंत्र के काली विद्यायों में महारत हासिल रखते हैं। वैसे ऐतिहासिक रूप से इन योगियों की उत्पत्ति हैदराबाद के पूर्व निजाम के शासनकाल में माना जाता है। यह समुदाय पारंपरिक रूप से अंत्योष्टि से जुड़े धार्मिक कर्मकांड करनेवाला वर्ग माना जाता है। श्मशान ही इनका ठिकाना होता है और इनका जीवन दान-दक्षिणा से ही चलता है। श्मशान के उपासक मसान योगी श्मशान के देवता माने जाते हैं। ये ज्वालामुखी (चिता) की आग का इस्तेमाल करते हैं, इसीलिए कुछ समय पहले तक रसोई की आग इनके लिए पूर्णतः प्रतिबंधित थी। वैसे इनको लेकर आज भी एक रहस्यमय वातवरण ही है। वर्ष 2011 की जनगणना में इनकी कुल संख्या 27,000 दर्ज़ की गई है। वैसे बदले समय में इस समुदाय के कुछ लोग अब आम ज़िन्दगी का हिस्सा भी बनने लगे हैं।
इस समुदाय के बारे में आज भी कई तरह की भ्रांतियां हैं। जिसका मूल आधार धर्म और अंधविश्वास ही है। अब एक भ्रांति यह है कि ये श्मशान को जागृत करते हैं और ये अपनी शक्ति से मृत व्यक्ति को भी जीवित कर सकते हैं। तंत्र-मंत्र साधना भी इनकी क्रियायों में शामिल हैं। जिसका लाभ किसको कैसे मिलता है, यह एक विचित्रता भरी परिकल्पना है। बहरहाल, इनके अनुसार शमशान को निम्नलिखित दस प्रकारों से जागृत किया जाता है -सफेदा ,यमदंड, सुकिया, फुलिया, हल्दिया कमेदिया, कीकिचिया, मिचमिचिया, सिलासिलिया, पिलिया। ये नाम उन 10 शक्तिशाली प्रेत शक्तियों के हैं जो कि शमशान साधना के अधिपति होते हैं। इनकी मान्यता के अनुसार इन्ही प्रेत शक्तियों के बल के माध्यम से श्मशान की ख़ामोशी में अभिचार कर्म, भूतप्रेत , पिशाच, बेताल, भैरव, आदि के मंत्र सिद्ध किये जाते हैं।
इनके अनुसार शमाशान के सेनापति महिषासुर और धूम्रलोचन को माना जाता है और मुख्य गणश्मशान भैरव और रक्त चामुण्डा काली होती है। वैसे और मशान वीरों की भी सिद्धि की जाती हैं जिनका स्वरुप घनश्याम, भयानक, दीर्घ देह, बड़े बड़े केश और सघन बड़ी लोम्राशी, हाथ में वज्र और पाश, नग्न पाद, चमड़े की लंगोट धारण किये हुए है। ये दुनियां के बने बनाए नियम नहीं मानते और निषिद्ध से निषिद्ध चीज़ों को अपने भोजन के रूप में ग्रहण करते हैं।
ये कई प्राकर के विचित्र साधना करते हैं। इनके अनुसार अघोर साधना, काल भैरव साधना, श्मशान जागरण साधना, आसन कीलने की साधना, उग्र काली साधना, 52 भैरव और 52 वीर और 56 कलुवा वीरों की साधना, महाउग्र तारा साधना, श्मशान काली साधना, मरघट चंडी साधना, तांत्रिक षट्कर्म आदि श्माशान में की जाने वाली प्रमुख साधनाएं है। इनके अतिरिक्त वीर साधन एक अति महत्वपूर्ण साधना है।
फिल्मों, सीरियलों, दंतकथाओं आदि ने इनके बारे में इतने डरवाने छवि प्रस्तुत किए हैं कि किसी भी साधारण इंसान को इनके आस पास फटकने में भी भय घेर लेता है लेकिन कुछ समय इनके पास गुजारिए तो इनके आसपास रचा झूठ का तिलिस्म खंडित होने लगता है और पता चलता है कि ये भी हम और आपकी तरह एक साधारण मानव ही हैं और बड़े-बड़े तंत्र-मंत्र जानने और विचित्र-विचित्र कार्य को सम्पन्न करने का दावा प्रस्तुत करनेवाले इन अजीब वेशभूषा धारियों के आडम्बर के नीचे एक साधारण मानव का ही निवास है। वैसे भी अघोर का अर्थ समझाते हुए एक अघोरी कहते हैं - जो घोर नहीं बल्कि सरल हो।
आपकी इस पोस्ट को आज की बुलेटिन राष्ट्रीय मतदाता दिवस और ब्लॉग बुलेटिन में शामिल किया गया है.... आपके सादर संज्ञान की प्रतीक्षा रहेगी..... आभार...
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