हटिया पटना एक्सप्रेस में रांची में एक सज्जन हमारी कम्पटमेंट में चढ़े - साईं भक्त। सज्जन क्या हैं पूरी चर्बी के चलते फिरते नमूने थे। आते ही उन्होंने अपने 4 बड़े बड़े लगेज सीट के नीचे जय साईं राम करते हुए घुसेड़ दिए और चेन के सहारे एक बड़ा सा ताला भी यह कहते हुए जड़ दिया कि ट्रेन में "साले" चोर बदमाश भी बहुत घुसने लगे हैं। यह कहते हुए भाई साहेब महीने भर पहले घटित किसी चोरी की कथा का गालियों सहित वाचन भी करने लगे। सीट के नीचे उन्होंने इतना सामान भर दिया कि अब किसी और के लिए कोई जगह नहीं बची थी। वो तो खैर मनाइए कि मिडिल का दो बर्थ खाली था नहीं तो महाभारत तय थी। फिर मोबाइल पर साईं भजन बजाते हुए यह बखान करने लगे कि वो साईं के कितने बड़े भक्त हैं। फिर योगा (जो निश्चित ही यह व्यक्ति कभी न करता होगा) पर प्रवचन देने लगे। फिर ट्रेन, बर्थ आदि की समस्या पर भी अपने ज्ञान बांटने लगे जैसे हम सब चाँद से आए हो और हमें इस दुनियां के बारे में कोई ज्ञान ही नहीं है। उनकी सबसे बड़ी शिकायत बर्थ की चौड़ाई है जिसकी वजह से जनाब करबट तक नहीं बदल पाते हैं। इनकी साइज देखकर शिकायत जायज भी है लेकिन इन्हें कौन समझाए कि समस्या बर्थ का साइज नहीं बल्कि ये खुद हैं। फिर तकिया कम्बल के लिए झिक झिक करने लगे और आखिरकार दो तकिया और एक कम्बल सिर के नीचे अपनी ऊपरवाली सीट पर लगा के विंडो सीट पर विराजमान हो गए। बेचारे सरकार को कोस भी रहे थे कि लोयर सीट नहीं दिया।
खैर, जैसे ही सामने वाले एक सज्जन ने लैपटॉप ऑन किया भाई ने प्रभु प्रभु यदि आपकी आज्ञा हो तो -- करते हुए अपना मोबाइल का केबल उसमें घुसेड़ दिया और तब तक चार्ज करते रहे जब तक लेपटॉप ने दम न तोड़ दिया। फिर वो फोन पर व्यस्त हो गए और बहुत देर तक आपकी कृपा, आपका आशीर्वाद, प्रभु की कृपा जैसे वाक्यों से सहयात्रियों को कृतार्थ करते रहे। मुझे मोबाइल पर फ़िल्म देखनी थी तो मैंने कहा प्रभु लाइट बंद कर दें? उनका रुखाई से जवाब आया - नहीं मैं अभी फ़ोन कर रहा हूँ। फिर वो प्रभु तबतक फोन करते रहे जबतक कि फोन की बैट्री ने दम न तोड़ दिया।
अभी सुबह उठे हैं और प्रभु मैं आपका चार्जर इस्तेमाल कर सकता हूँ कहते हुए एक सहयात्री का चार्जर अपने मोबाइल में घुसेड़के बकबक किए जा रहे हैं। जनाब कपड़ा भी खुलेआम बदल रहें हैं और बातें तो रुकने का नाम ही नहीं ले रहीं हैं। हाँ वैसे इनकी भाषा बड़ी अच्छी हैं। हिंदी, अंग्रेजी और मगही दनादन बोले जा रहे हैं। और मैं यह सोच रहा हूँ कि साईं तो ताजीवन दूसरों की सेवा में लगे रहे लेकिन साईं के ये भक्त ---? पूजने मात्र से क्या होता है जी? संवेदनशीलता और सेवाभाव पूजने से नहीं आती। साईं भी सोच रहे होगें भांति भांति के भक्त हैं मेरे। वैसे कल जो इन्होंने बड़ा सा टिका अपने माथे पर सजा रखा था उसका अब कहीं कोई नामोनिशान नहीं है। बिस्तर ने इनका टीका तो पोंछ दिया लेकिन मन? मुझे बाबा कबीर की याद आ रहे हैं।
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